कलयुग में कैसे जिए?
आज के आधुनिक युग में हमारी दुनिया किस दिशा में जा रही है? क्या यह हमारी मानव जाति के लिए सबसे अच्छा समय है?
In today’s Modern Age, in which direction is our World going? Is this the best time for our human race?
यह दुनिया आधुनिक तकनीकी दौर में आगे बढ़ रही है, साथ ही मानवता धर्म और संस्कार में पीछे जा रही है। यह मनुष्य को उसके पतन की और लेकर जा रही है। वर्तमान सबसे अच्छा समय है। वर्तमान में कर्म करके भविष्य बनाने की ताकत है।
आइए इसे विस्तारपूर्ण समझते हैं।
आज की दुनिया पतन की और जा रही है। आज आधुनिक व्यवस्थाए है। लोग आगे बढ़ रहे है, तकनिकी तरक्की हो रही है, सब सही है। मगर साथ ही, लोगो में बीमारी, दोष, परिवार में कलेश, अपनों का साथ छूटना, यह सब बढ़ रहा है। इससे मनुष्य की लौकिक प्रगति तो हो रही है मगर अलौकिकरूप से खोखला हो रहा है। ज्ञान होने के बावजूद भी ज्ञान नहीं है, वह कैसे? ज्ञान है आधुनिक रूप का, जो लौकिकरूप से ही काम आता है, मगर अलौकिक रूप से कोई प्रगति नहीं है। जिससे Depression, Anxiety जैसे मानसिक तनाव के रोग उत्त्पन हो रहे है। धन, शोहरत, गाडी, बंगला, सब सुविधा है, अगर इसे सुख मानते है तो यह बहोत मामूली सुख है। यह आवश्यक वस्तुए हो सकती है जीवन के लिए, मगर पूर्ण सुख कभी नहीं दे सकती। सबकुछ होने के बावजूद भी मनुष्य खुश नहीं रह पाता। अंदरूनी ख़ुशी नहीं है जिसे सुख कहते है। मन प्रसन्न रखने के लिए, इन्द्रियों को संतुष्ट रखने के लिए, हम मनुष्य अलग अलग क्रिया करते है जो लम्बे समय पर और दुःखी कर देती है। अब बताएं कहां जा रहा है युग? और इसे ही कलयुग कहा है।
सुखी कोण? सुखी कोण? (वीडियो देखे।)
पुराणों के अनुसार, कलयुग में मनुष्य की उम्र कम और, कम बुद्धिजीवी होगा, अन्याय बढ़ेगा, और बहोत कुछ है जो धीरे धीरे घटित हो ही रहा है। इसमें मनुष्य क्या ही कर सकता है – जैसे जैसे युग जाता है वैसे वैसे दौर आगे बढ़ता है, जैसा होना है वो तो होकर ही रहेगा। सबको बदल नहीं सकते मगर मनुष्य खुद पर सयंम रख, आगे प्रगति की और बढ़ ही सकता है।
सतयुग के बारे में शास्त्रों में बताया है, सब एक दुसरो की सेवा करने के लिए तत्पर रहते थे, दूसरों की भलाई के बारें में सोचकर काम करते थे। यह समय ऐसा था- मनुष्य में कोई दोष नहीं था। शास्त्र अनुसार मनुष्य का कर्म जीवन कैसे व्यतीत करना, कैसे जीवन यापन करना सब बताया हुआ है, जो सुखपूर्ण जीवन देने के लिए सक्षम है। त्रेता युग का समय आया मनुष्य में दोष उत्तपन हुए, वह थोड़ा बहोत अपने बारें में सोचने लगा। द्वापर युग में इससे ज्यादा परिस्थिति विषम होती गयी। कलयुग में पूरा सतयुग का विरुद्ध आचरण होना शुरू हो गया।
जैसे जैसे युग के वर्ष बीतते गए, वैसे वैसे शास्त्र का लिखा – गलत समझ कर या दोष के वश में आकर, गलत व्यवहार करने लगे।
एक उदाहरण रूप समझना चाहें: पहले स्त्री और पुरुष अपना अपना कार्य करते। पुरुष पुरुषार्थ स्वरुप और स्त्री भावुकता और शक्ति स्वरुप कार्य करते थे। ऐसा नहीं था की पुरुष जो करता था वह स्त्री नहीं कर सकती थी, या स्त्री जो कर सके वह पुरुष नहीं कर सकता। मगर पुरुष और स्त्री, स्वाभाव और गुण के आधारित कार्य करते थे। यह बात को गहराई से समझे तो एक मनुष्य में Male और Female energy दोनों होती है। पुरुष में Male energy जयादा और Female energy कम। स्त्री में Female energy ज्यादा और Male energy कम होती है। इसको परिपूर्ण करने योग्य, आत्मा की प्रगति के लिए विवाह करते है, एक दूसरे का सहयोग करते है। इसको विवाह ना करके भी balance करने के लिए कार्य दिए है जो योगी करते है (यह एक अलग विषय है)।
धीरे धीरे जैसे जैसे वर्षों बीतते गए, लोगों ने स्त्री की सुरक्षा करने में गलत दृष्टिकोण बनाके बंदी बनाकर रखकर एवं निम्न समझने लगे। वही आज स्त्री इसके लिए आवाज़ उठाकर कार्य करने लगी है। क्योंकि लोगों ने गलत अर्थ निकालकर व्यवहार करना शुरू किया। वैसे ही पुरुष के साथ भी है। जभी किसी spring को ज़ोरसे दबाते है तो वह एक बार उछलती ज़रूर है। वैसे ही caste को लेकर, caste वर्णव्यवस्था दिखाती है। मगर इसको लेकर भी गलत व्यवहार होने लगा। राजनीती में भी, वग़ैरह वग़ैरह…
यह सबसे मनुष्य की आत्मा का विकास कम हो गया और वह लौकिक परेशानियों में उलझ गया।
आधुनिक युग में तकनिकी विकास का उपयोग करना गलत नहीं है , कुछ बदलाव मनुष्य के लिए बहोत अच्छे है क्योंकि आप सतयुग जैसा जीवन अब कलयुग में नहीं जी सकते। इसी लिए कलयुग में प्राप्ति बहोत जल्दी भी होती है (पुराण-वेद अनुसार)। यह सबसे मनुष्य की आत्मा का विकास कम हो गया और वह लौकिक परेशानियों में उलझ गया।
इसे हमें balance करना सीखना पड़ेगा। और इसके लिए वर्तमान समय सबसे अच्छा है। हर समय अपनी परिस्थितिया लाती है, नाहीं परिस्थितियाँ समय लाती है (यह मेरा मंतव्य है)। हमारे पास सिर्फ एक ही हथियार है ‘सही गलत का भेद समझ कर कार्य करना जिसे कर्म के रूपसे हम अवगणित है।’ मनुष्य सिर्फ आचरण सही रखकर संस्कार अच्छे बना सकता है जो मृत्यु पश्चात साथ लेकर जा सकता है। पांच इद्रियों एवं मन को नियंत्रण में रखना अभी के समय में कठिन है, पर नामुमकिन भी नहीं है। मनुष्य में जो दोष उत्त्पन होते है वह भी इससे कम हो जाते है [दोष: काम (वासना या कामुक सुख की इच्छा), क्रोध, लोभ, मोह(आसक्ति), मद (मैं), मात्सर्य (ईर्ष्या)]
संक्षिप्त :
मनुष्य सही आचरण रख कर सही समय ला सकता है।
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