ज्योतिष क्या है? What is Astrology?
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भारतीय ज्योतिष शास्त्र एक प्राचीन विद्या है। इसका उल्लेख कैसे और कहा किया गया वह जानते है। भृगु ऋषि ने भृगु संहिता लिखी। इतिहास में देखे, इ स पूर्व हजारो वर्ष पहले वेदांग ज्योतिष के रचना ऋषि लगध ने की। परन्तु इसके बारे में २०० वर्ष के बाद लिखा गया। जिसमे खगोल शास्त्र और ज्योतिशास्त्र दोनों का उल्लेख है।
वेदांग क्या है?
हम शुरू करते हैं प्राचीन काल से, हमारे प्राचीन ग्रंथो में वेद भी है, इन वेदों के अंग है; जिन्हे हम वेदांग कहते है। वेद + अंग = वेदांग
वेद को समझने की लिए और अभ्यास के लिए यह 6 अंग है।
वेदांग के अंग
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- शिक्षा – यह अंग में उच्चार का शास्त्र (Phonetic), ध्वनि शास्त्र (Phonology), और संधि के बारे में जानकारी दी गई है।
- कल्प – कर्मकांड की विधि (यज्ञ विधिसूत्र) Ritual के बारे में बताया है। जिसके अन्तर्गत श्रौतसुत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र की चर्चा है और वेदोक्त कार्य संपन्न एवं समर्पण करने में इनका महत्त्व है।
- व्याकरण – वाक्य के निर्माण के लिए व्याकरण (Grammar) का उपयोग होता है। संधि, विभक्ति, उपमा और समास के बारे में बताया है। (व्याकरण कहां से आया?)
- निरुक्त – शब्दों का मूल (word origination) भाव कहां से आया? शब्दों का भूल भाव, व्युतपति शास्त्र ( Etymology), शब्दावली का विवरण किया गया है।
- छंद – मीटर, माप का विज्ञान, श्लोक की लंबाई एवं गायन और मंत्रोच्चारण का लय और रचना का ज्ञान दिया गया है।
- ज्योतिष – ग्रहों और नक्षत्र की गति और स्थिति, समय का ज्ञान और उपयोगिता दर्शाई गई है।
ज्योतिष का अर्थ (Meaning of Astrology)
ज्योति + ईश = ज्योतिष
ज्योति और ईश के संयोग से ज्योतिष शब्द बनता है। जिसका अर्थ होता है ईश्वर की ज्योति, जो भूत, भविष्य, वर्तमान देखने के लिए सक्षम है। यह ज्योति जो देख सकता है उन्हें ज्योतिष (Astrologer) कहते है।
ब्रह्मांड (Universe) में नव ग्रह (Planets) की गति एवं 27 नक्षत्र (Nakshatras) को कागज़ के चिट्ठे पर 12 खाने बनाके इन्हे अंकित करते है जिसे हम कुंडली (Horoscope) कहते है।
ज्योतिषशास्त्र की शाखाएं (Branches of Astrology)
ज्योतिष की मुख्य 3 शाखाएं है। जिसे 2 भागों में रखा गया है।
- गाणितिक ज्योतिष (Mathematical Astrology)
- फलित ज्योतिष (Predictive Astrology)
शाखाएं:
- सिद्धांत – गाणितिक ज्योतिष
- संहिता – फलित ज्योतिष
- होरा – फलित ज्योतिष
1) सिद्धांत (सिद्धांत)
- सिद्धांत अर्थात् सिद्ध + अंत, इसका मतलब प्रस्थापित निर्णय।
- परंपरागत खगोलशास्त्र (Traditional Astronomy) ज्योतिष के लिए खास उपयोगी है। जिसको 2 भागों में विभाजित किया गया है।
- अपौरुषेय – जो तंत्र के तरीके से जाना जात है।
- पौरूषेय – जो करण तरीके से जाना जाता है।
- अपौरुषेय 21 सिद्धांत है। जिसमे से 18 अपौरुषेय सिद्धांत ऋषिमुनिओ ने दर्शाए है।
- ब्रह्मा सिद्धांत
- सूर्य सिद्धांत
- सोम सिद्धांत
- बृहस्पति सिद्धांत
- गर्ग सिद्धांत
- नारद सिद्धांत
- पराशर सिद्धांत
- पोलस्त्य सिद्धांत
- वशिष्ठ सिद्धांत
- व्यास सिद्धांत
- अत्रि सिद्धांत
- कश्यप सिद्धांत
- मरीचि सिद्धांत
- मनु सिद्धांत
- अंगिरस सिद्धांत
- लोमशा सिद्धांत
- पुलिषा सिद्धांत
- भृगु सिद्धांत
- शकुन सिद्धांत
- च्यवन सिद्धांत
- यवन सिद्धांत
- पौरुषेय सिद्धांत कलयुग की शुरुआत में बने हुए मानवसर्जित यानी करण सिद्धांत है।
- करण सिद्धांत कुल 10 है। जिसमे 50 वराहमिहिर ने पंचसिद्धांतिका पुस्तक में दर्शाया है। दूसरे 5 आर्यभट्ट और भास्कर ने बताये है। जिसको पंचांग के नाम से जानते है।
2) संहिता (Samhita)
- मेदिनी ज्योतिष – भूकंप, हवामान, बारिश, राजकरण, और नाणा सम्बंधित, वास्तुशास्त्र, पशु, शुकन शास्त्र, एवं मुहूर्त (Election Astrology) के बारे में है।
- ८४ चक्र – जैसे की पंचशलाफ़ा, सर्वतो भद्र चक्र यह तंत्र विद्या के लिए उपयोगी है।
- मुहूर्त – शुभ समय निकालने के लिए उपयोगी है।
3) होरा (Hora)
- होरा एक फलित ज्योतिषशास्त्र (Predictive Astrology) है।
- जिसमे समावेश होता है जातक की जन्म कुंडली (Birth Chart Reading), प्रश्न कुंडली (Horari Astrology)
- सामुद्रिक शास्त्र: जिसमे हस्तरेखा (palmistry), मुखाकृति(Face Reading), अंग लक्षण (Features of the part of the body), अंक ज्योतिष (Numerology) के बारे में है।
- स्वर शास्त्र (Phonetical Astrology), नाड़ी शास्त्र (Nadi Astrology)
- स्त्री जातक (Female Astrology)
- ताजिक शास्त्र / वर्षफल (Annual Horoscopy)
- जैमिनी सूत्र
- गुम हुए व्यक्ति एवं वस्तु का शास्त्र जिसे नष्ट जातकम् कहते है।
ज्योतिषशास्त्र का महत्व (Significance of Astrology)
जीवन के कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए ज्योतिष को उपयोग में लेना चाहिए। पढ़ाई हो या business शुरू करना हो, शादी का जीवन हो या संतान संबंधित बात जो, कुछ खरीदना हो या कुछ देना हो, हर कार्य में ज्योतिष का उपयोग करके कार्य फलीफूत करना चाहिए। साधु संत एवं सन्यासी भी इसका उपयोग अपने कार्य में लेते है।
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